सामाजिक अवमूल्यन पर राष्ट्रीय चिंतन – आर.एस.एस. और मीडिया जगत के शीर्ष नेताओं का गहन संवाद
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सामाजिक अवमूल्यन पर राष्ट्रीय चिंतन – आर.एस.एस. और मीडिया जगत के शीर्ष नेताओं का गहन संवाद

National Discussion on Social Devaluation

National Discussion on Social Devaluation

नई दिल्ली,16 अगस्त। National Discussion on Social Devaluation: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) उत्तर भारत के प्रमुख पवन जिंदल, दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन, दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय सचिव एवं वरिष्ठ समाजसेवी भूपेंद्र मलिक, मीडिया काउंसिल ऑफ जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय राठी, तथा हरियाणा आर.एस.एस. के प्रमुख प्रताप सिंह ने आज समाज में बढ़ते सामाजिक अवमूल्यन को लेकर एक महत्वपूर्ण विचार-विमर्श किया।
बैठक में वक्ताओं ने माना कि आधुनिक समाज तेज़ी से भौतिकवाद और व्यक्तिगत स्वार्थ की ओर बढ़ रहा है, जिसके कारण परंपरागत सामाजिक मूल्य, नैतिकता और पारिवारिक संस्कारों में गिरावट देखी जा रही है।
पवन जिंदल ने कहा कि सामाजिक ताने-बाने को मज़बूत करने के लिए समाज के हर वर्ग को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। उन्होंने विशेष रूप से युवाओं को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने पर बल दिया।
अभय महाजन ने दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद के सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि “समाज तभी सशक्त होगा जब हम विकास के साथ-साथ नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी संरक्षण करेंगे।
भूपेंद्र मलिक ने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अनुभव साझा करते हुए कहा कि “आज आवश्यकता है कि समाज में नैतिक शिक्षा, नशामुक्ति, पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक संवाद पर नए सिरे से काम किया जाए।
संजय राठी ने पत्रकारों और मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “मीडिया केवल समाचार देने का साधन नहीं है, बल्कि समाज में जागरूकता, सकारात्मकता और नैतिकता का संवाहक भी होना चाहिए। पत्रकारिता को जनहित और समाजहित से जोड़ा जाना आज समय की मांग है।”
प्रताप सिंह, हरियाणा आर.एस.एस. प्रमुख ने कहा कि “सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए भारतीय समाज को अपने प्राचीन मूल्यों, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रीय चेतना को पुनः जीवित करना होगा। परिवार और समाज की एकता ही राष्ट्र की असली ताकत है।”
बैठक में यह निष्कर्ष निकाला गया कि समाज को पुनः अपनी जड़ों और मूल्यों से जोड़ने के लिए शिक्षा, संस्कृति, मीडिया और सामाजिक संस्थाओं को एक साझा मंच पर आकर कार्य करना होगा। अंत में, सभी विद्वानों ने मिलकर संकल्प लिया कि निकट भविष्य में विभिन्न विश्वविद्यालयों, सामाजिक संगठनों और मीडिया मंचों के माध्यम से जन-जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, ताकि सामाजिक अवमूल्यन की प्रक्रिया को रोका जा सके और राष्ट्र को एक सशक्त व मूल्यनिष्ठ दिशा दी जा सके।